देहरादून। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने "एक राष्ट्र, एक चुनाव" विधेयक को देश के विकास और लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए आवश्यक कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक देश के भले के लिए है और इसे राजनैतिक कारणों से विरोध करना उचित नहीं है। भट्ट ने इस मुद्दे पर सरकार द्वारा किए गए प्रयासों और विधेयक के पीछे की सोच पर विस्तार से चर्चा की।
भट्ट ने कहा कि यह विचार नया नहीं है और इससे पहले भी देश में समकालिक चुनावों का पालन किया गया था। उन्होंने बताया कि इस विधेयक का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को एकीकृत करना और चुनावी खर्च को कम करना है। भट्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनभावना और देश की जरूरत को समझते हुए इस मुद्दे को उठाया और इसके लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया था, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने की थी। समिति ने 62 राजनीतिक दलों से इस प्रस्ताव पर सुझाव मांगे थे, जिनमें से 47 दलों ने प्रतिक्रिया दी, जिनमें 32 दलों ने समकालिक चुनाव का समर्थन किया और 15 ने विरोध किया। इसके अलावा, 83% जनता ने भी इस विधेयक के पक्ष में अपनी प्रतिक्रिया दी है।
भट्ट ने विधेयक के महत्वपूर्ण पहलुओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है। यदि किसी विशेष परिस्थिति में सरकार भंग होती है, तो चुनाव केवल शेष कार्यकाल के लिए होंगे। इसके अलावा, इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए 2034 तक का समय तय किया गया है।
भट्ट ने विधेयक के फायदे बताते हुए कहा कि देश में अक्सर चुनाव होते रहते हैं, जिससे विकास कार्यों में रुकावटें आती हैं और सरकारी खर्च बढ़ता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि 2024 के लोकसभा चुनावों में ₹1 लाख करोड़ से अधिक खर्च हुआ, जबकि समकालिक चुनाव होने से सरकार को केवल एक बार संसाधनों का उपयोग करना पड़ेगा, जिससे ₹12,000 करोड़ की बचत हो सकती है। इसके साथ ही, चुनावी प्रक्रिया में बार-बार होने वाले व्यवधानों को भी कम किया जा सकेगा, जिससे विकास कार्यों की गति में सुधार होगा।
भट्ट ने यह भी कहा कि बार-बार चुनाव होने से मतदान प्रतिशत पर भी असर पड़ता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि 1999 में कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में राज्य विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ कराए गए थे, जिससे मतदान प्रतिशत में 11.5% की वृद्धि देखी गई थी।
वहीं, कांग्रेस और इंडी गठबंधन ने इस विधेयक का विरोध किया है। भट्ट ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि 1952 से लेकर 1967 तक कांग्रेस ने इसी प्रक्रिया के तहत चुनाव लड़े, लेकिन आज वह इसका विरोध कर रही है। उन्होंने कहा कि यह विरोध राजनैतिक कारणों से किया जा रहा है और यह विपक्ष की प्रवृत्ति को उजागर करता है कि मोदी सरकार द्वारा उठाए गए किसी भी सुधारात्मक कदम का विरोध किया जाता है।
भट्ट ने इस विधेयक को लोकतांत्रिक परंपराओं के अनुरूप और देश की भलाई के लिए जरूरी कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक चुनावी प्रक्रिया को सुधारने, खर्च को कम करने और लोकतांत्रिक परंपराओं को पुनर्स्थापित करने के दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।