केंद्रीय वाइब्रेंट विलेज योजना के दूसरे चरण को मंजूरी मिलने के बाद उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास की नई संभावनाएं जन्म ले रही हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने इस फैसले को प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह सीमांत गांवों के लिए एक सकारात्मक बदलाव की दिशा में बड़ा कदम है।
उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा सीमावर्ती गांवों को “अंतिम गांव” के बजाय “प्रथम गांव” के रूप में देखने के दृष्टिकोण की सराहना की और कहा कि वाइब्रेंट विलेज योजना इसी सोच को धरातल पर लाने का माध्यम है। पहले चरण के तहत इन गांवों में बुनियादी सुविधाएं बढ़ाई गईं, पर्यटन को प्रोत्साहन मिला और उच्चस्तरीय निगरानी के माध्यम से योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया गया।
उत्तराखंड में चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ जैसे जिलों के सीमावर्ती गांवों ने इस योजना के पहले चरण के तहत उल्लेखनीय प्रगति की है। कई गांव पर्यटन के नक्शे पर उभरे हैं और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिले हैं।
अब दूसरे चरण को वित्तीय मंजूरी मिलने के बाद इन गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, संचार और आधुनिक मूलभूत सुविधाओं के विस्तार की उम्मीद है। इससे न केवल पलायन पर अंकुश लगेगा बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार और व्यवसाय के नए अवसर भी उपलब्ध होंगे।
सीमा क्षेत्रों में स्थायी जनसंख्या के रहने से देश की सुरक्षा व्यवस्था भी सुदृढ़ होती है। इसके अतिरिक्त "सीमा दर्शन" जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने की संभावना है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
योजना के दूसरे चरण के साथ ही यह उम्मीद की जा रही है कि सीमावर्ती गांवों की पहचान अब केवल भौगोलिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि ये गांव सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विकसित और समृद्ध बनेंगे।