देहरादून: प्रदेश में निजी स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि और निजी प्रकाशनों की पुस्तकें अनिवार्य किए जाने के मामलों को लेकर एनएसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा को एक ज्ञापन सौंपा। संगठन ने इन मुद्दों को आम अभिभावकों और विद्यार्थियों के हित में गंभीर बताया है।
एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष विकास नेगी ने ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि निजी स्कूलों द्वारा लगातार फीस में वृद्धि की जा रही है, जबकि महंगाई पहले से ही आम जनमानस की आर्थिक स्थिति पर असर डाल रही है। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग की ओर से निजी प्रकाशनों की पुस्तकें अनिवार्य करने संबंधी निर्देश भी चिंता का विषय हैं।
ज्ञापन में प्रमुख रूप से चार मांगें रखी गईं:
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मौजूदा आर्थिक हालात को देखते हुए निजी स्कूलों द्वारा की जा रही फीस वृद्धि पर रोक लगाई जाए, जिससे अभिभावकों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ न पड़े।
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कुछ निजी स्कूलों द्वारा हर वर्ष पाठ्यक्रम में बदलाव कर निजी प्रकाशकों की किताबें लगवाई जा रही हैं, जिससे किताबों की खरीद एक महंगा सौदा बन गया है। संगठन का आरोप है कि इस प्रक्रिया में कुछ स्कूल संचालकों और प्रकाशकों के बीच अनुचित आर्थिक लेन-देन हो रहा है।
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सभी निजी विद्यालयों में प्रवेश आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) के तहत सुनिश्चित किया जाए ताकि वंचित वर्ग के बच्चों को भी समान अवसर मिल सके।
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शिक्षा विभाग निजी विद्यालयों से अभिभावक संघ की सहमति प्राप्त करने की प्रक्रिया को अनिवार्य बनाए, जिससे निर्णयों में पारदर्शिता बनी रहे।
इस मौके पर एनएसयूआई के राष्ट्रीय संयोजक प्रदीप तोमर, प्रदेश सचिव मुकेश बसेरा, हरजोत सिंह, प्रांचाल नोन्नी, पुनीत राज सहित कई अन्य कार्यकर्ता भी उपस्थित रहे। संगठन ने मांग की है कि शिक्षा से जुड़े इन मुद्दों पर शीघ्र कार्रवाई की जाए ताकि विद्यार्थियों और अभिभावकों को राहत मिल सके।