उत्तराखंड में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर राज्यसभा में चिंता जताई गई है। प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने इस मुद्दे को सदन में उठाते हुए केंद्र सरकार से नरभक्षी जानवरों के त्वरित उन्मूलन के लिए नियमों में आवश्यक सुधार की मांग की।
सदन में अनुपूरक प्रश्न के तहत बोलते हुए भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी और वन्य क्षेत्र वाले राज्य में मानव-वन्यजीव टकराव एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में ऐसी घटनाओं में 161 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें तेंदुए के हमले से 66, हाथी से 28, बाघ से 13, भालू से 5 और सांप के काटने से 14 लोगों की मौत हुई है।
भट्ट ने कहा कि कई बार इस तरह के हमलों में शामिल जानवरों को नरभक्षी घोषित कर उनके नियंत्रण या उन्मूलन की प्रक्रिया में देरी होती है, जिससे स्थानीय लोगों की जान को और अधिक खतरा उत्पन्न होता है। उन्होंने सरकार से पूछा कि क्या ऐसे मामलों में नियमों में कुछ लचीलापन लाकर अनुमति प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है।
इस पर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने जवाब देते हुए कहा कि वन्य जीव अधिनियम के तहत शेड्यूल 1 में आने वाले प्रजातियों के मामले में केवल अधिकृत वन्यजीव अधिकारी ही अनुमति दे सकते हैं। हालांकि दूसरी श्रेणी के मामलों में ये अधिकार निचले स्तर तक भी सौंपे जा सकते हैं। उन्होंने केरल का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां कुछ मामलों में पंचायतों तक को यह अधिकार दिए गए हैं।
मंत्री ने यह भी बताया कि हाल ही में उत्तराखंड में इस विषय पर बैठक हुई है, जिसमें रेस्क्यू सेंटरों की संख्या बढ़ाने जैसे कदमों पर विचार किया गया है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या दबाव के चलते ऐसी स्थितियां अधिक बन रही हैं और सरकार इस दिशा में आवश्यक कदम उठा रही है।
उत्तराखंड जैसे राज्य में जहां जंगल और मानव बस्तियां अक्सर समीप होती हैं, ऐसे प्रयासों को स्थानीय स्तर पर काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। आने वाले समय में इस दिशा में और क्या निर्णय लिए जाते हैं, उस पर सभी की निगाहें टिकी होंगी।