स्थानीय मुद्दे गायब, सांप्रदायिकता पर फोकस?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निकाय चुनाव स्थानीय मुद्दों जैसे कानून-व्यवस्था, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, और बुनियादी सुविधाओं पर आधारित होने चाहिए। लेकिन, भाजपा की चुनावी सभाओं में बार-बार "लैंड जिहाद," "थूक जिहाद," और धार्मिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे छाए हुए हैं।
इस प्रकार की बयानबाज़ी पर सवाल उठाते हुए विपक्ष का कहना है कि स्थानीय जनता को उम्मीद थी कि सत्तारूढ़ दल अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाएगा और विकास का रोडमैप पेश करेगा। लेकिन, इसके बजाय चुनावी मंचों पर सांप्रदायिक मुद्दों को हवा दी जा रही है।
विकास के वादों पर सवाल
शहरी क्षेत्रों में नागरिक बुनियादी ढांचे के विकास की धीमी प्रगति और कई अधूरे प्रोजेक्ट्स ने भी जनता के बीच चिंता बढ़ाई है। स्मार्ट सिटी परियोजना, सड़क मरम्मत, जल निकासी, सीसीटीवी कैमरों की कमी, और सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता जैसे विषय अभी भी अधूरे पड़े हैं।
चुनावी रणनीति पर उठते सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोई पहली बार नहीं है जब चुनावी माहौल में धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों को प्रमुखता दी गई हो। अक्सर चुनाव के समय ऐसे मुद्दे सामने लाए जाते हैं, जो असल में लोगों की समस्याओं से भटका देते हैं।
जनता की भूमिका अहम
उत्तराखंड की जनता के लिए यह चुनाव केवल प्रतिनिधि चुनने का नहीं, बल्कि सरकार और प्रशासन से सवाल करने का मौका भी है। नागरिकों को चाहिए कि वे तुष्टीकरण और भटकाने वाली राजनीति को दरकिनार करते हुए वास्तविक मुद्दों पर ध्यान दें।
निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव की उम्मीद
सभी दलों के लिए यह जरूरी है कि वे जनता के सामने अपने विकास के एजेंडे को स्पष्ट करें और चुनावी प्रचार में पारदर्शिता बनाए रखें। ऐसे समय में जब राजनीतिक बयानबाज़ी चरम पर है, निष्पक्ष चुनाव और मुद्दा-आधारित प्रचार की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।
निकाय चुनाव न केवल स्थानीय विकास के लिए अहम हैं, बल्कि यह प्रदेश की राजनीतिक दिशा तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
This article is based on a press release issued by the Indian National Congress. While GNN has adapted the content for journalistic clarity and neutrality, the information and views presented originate from the press release. For More info, CLICK HERE.